खरसावां : आजाद भारत के नए दौर में हुआ एक अध्भुत घटना जिसने खुलासा किया कि आजादी के बावजूद भी कुछ अद्भुत परिवर्तनों की कड़ी मेहनत की आवश्यकता है। 1 जनवरी 1948 को खरसावां बाजार में हुई सभा में हुए विशाल गोलीकांड में अनगिनत आदिवासियों की जानें गईं।
घटना का सारांश:
आजादी के स्वागत में खुले आसमान में बजते शोर के बीच, खरसावां बाजार में एक सभा आयोजित की गई थी जिसमें राजा आदित्य प्रसाद देव ओडिशा में शामिल होने का प्रयास कर रहे थे। इससे उत्पन्न भाषाई और सांस्कृतिक विवाद के कारण सभा में हिस्सा लेने वाले आदिवासियों पर ओडिशा मिलिट्री पुलिस ने बर्बरता से गोलियां चलाईं।
विस्तृत रिपोर्ट:
सभा में हुई इजाजत के बावजूद, गोलीकांड में हजारों आदिवासी जनसमूह पर मशीनगन से अनगिनत गोलियां बरसाई गईं। इस भीड़ में अनगिनत लोगों की मौत हो गई, कई लोग जख्मी हुए और कई का अब तक पता नहीं लगा है।
महानेता की चुप्पी:
महात्मा गांधी के जीवन के आख़िरी दिनों में, जब देश नए दिशा में बढ़ रहा था, उनकी चुप्पी ने इस हादसे को और भी दुखद बना दिया।
न्याय की माँग:
इस गोलीकांड के बाद आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने न्याय की माँग की और खरसावां राहत कोष का गठन किया। उन्होंने मृतकों के परिजनों और घायलों की मदद के लिए एक संगठन बनाया जिसने इस हादसे के पीड़ितों को सहारा पहुंचाने का कार्य किया।
नाश्तिकरण का दरिंदा:
इस घटना के बाद नृशंसता की सारी हदें पार करते हुए लाशों को दफन किया गया, जंगली जानवरों के लिए फेंका गया और नदियों में बहा दिया गया।
आंसुओं का सफर:
खरसावां गोलीकांड के ये दर्दनाक घटनाएं आज भी जारी हैं और हर साल इसकी याद में लोगों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
नेताओं का संविदान:
इस हादसे के बाद आदिवासी नेताओं ने संविधान में न्याय और समानता की मांग की, जिससे देश के एकता के रास्ते में बने रोड़ों को साफ करने का प्रयास किया गया।