झारखंड में कौन अपराध से बंगला का वध कर दिया गया,,,
बड़ा ही दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि जिस झारखंड राज्य में 42% लोगो की मातृ भाषा बंगला है उस बंगला का आज वध हो गया है।प्राइमरी से लेकर उच्च विद्यालय तक हर क्लास में,हर विद्यालय में बंगला की पढ़ाई होती थी, अधिकतर बंगला मीडियम स्कूल हुआ करता था,बिहार से झारखंड बनने के पश्चात बंगला भाषा झारखंड में राजनीति का शिकार हो गया।धीरे धीरे बंगला भाषा की पढ़ाई बंद हो गई,अंत मे सारे बंगला मीडियम के स्कूल हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गया उदाहरण के तौर पर मेरे आँखों के सामने नुआग्राम प्राइमरी स्कूल,जुड़ी मध्य विद्यालय,हलुदपुकुर मध्य विद्यालय, गिरी भारती उच्च विद्यालय हलुदपुकुर आदि है।
सबसे आश्चर्य की घटना तब देखने को मिली जब हलुदपुकुर रेल स्टेशन से बंगला को एक साल पहले गायब कर दी गई।स्वाधीनता के पहले हलुदपुकुर रेल स्टेशन की स्थापना हुई थी।तब से स्टेशन आफिस में बंगला में हलुदपुकुर लिखा हुआ था।एक साल पहले स्टेशन का सुंदरीकरण की गई।उसी समय बंगला का वध कर दिया गया।बंगला को हटाकर हिंदी ,इंग्रेजी और ओड़िया में हलुदपुकुर लिखा गया।हलुदपुकुर बंगला शब्द है और यह पूर्वी सिंहभूम पूरा बंगला भाषी छेत्र है।इसमें ओड़िया में लिखने का कोई तुक नही है, अगर लिखा भी तो बंगला को हटाने का क्या ओचित्य है।क्या यह 42%, बंगला भाषियों का अपमान और उपेक्षा नहीं कि गई।आजकल हिंदी अथवा इंग्रेजी भाषा सब कोई समझते हैं अतः हिंदी और इंग्रेजी दोनों भाषा में लिखने का क्या दरकार था।अगर लिखा भी गया तो बंगला में लिख देता तो क्या महाभारत अशुद्ध हो जाता।
अतः रेल विभाग और पोटका के माननीय विधायक, सांसद और अन्य जनप्रतिनिधियों से निवेदन है की जन भावनाओ को सम्मान देते हुए अविलंब हलुदपुकुर रेल स्टेशन में बंगला भाषा में स्टेशन का नाम लिखने की कृपा की जाय।आज जब झारखंड में 1932 की खतियान की बात हो रही है तब सभी को जानकारी होनी चाहिए कि 1932 की खतियान बंगला भाषा में ही है।अतः सभी से निवेदन है झारखंड में बंगला भाषा को उचित सम्मान देने की कृपा करें।
प्रतिवेदक,,,
सुनील कुमार दे
साहित्यकार सह समाजसेवी,पोटका।